• मणिपुर पर प्रधानमंत्री का बड़ा दावा

    पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बड़ा बयान दिया है। प्रधानमंत्री का दावा है कि केंद्र सरकार के समय रहते दख़ल देने और राज्य सरकार की कोशिशों के कारण मणिपुर के हालात में सुधार आया है।

    पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बड़ा बयान दिया है। प्रधानमंत्री का दावा है कि केंद्र सरकार के समय रहते दख़ल देने और राज्य सरकार की कोशिशों के कारण मणिपुर के हालात में सुधार आया है। द असम ट्रिब्यून नाम के अख़बार को दिए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि -हमारा मानना है कि हालात से संवेदनशीलता के साथ निपटना सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। मैंने इस बारे में संसद में पहले भी कहा है। हमने अपने सबसे अच्छे संसाधनों, प्रशासन को इस संघर्ष को सुलझाने में लगाया हुआ है। श्री मोदी ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर में तब रुके, जब संघर्ष अपने चरम पर था। इस संघर्ष से जुड़े पक्षों के साथ शाह ने 15 से ज़्यादा बैठक की। राज्य सरकार को जो भी मदद चाहिए होती है, केंद्र सरकार मुहैया करवाती है।

    गौरतलब है कि मणिपुर में हिंसा और अशांति का एक लंबा दौर चला है। मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च 2023 को अपने एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर शीघ्रता से विचार करने को कहा था। इसके बाद मई 2023 की शुरुआत में मैतेई और कुकी लोगों के बीच हिंसक झड़पों की शुरुआत हुई, जो बढ़ते-बढ़ते पूरे राज्य में फैल गई। इस हिंसा में घोषित तौर पर अब तक क़रीब 200 लोगों की जान जा चुकी है। हज़ारों लोगों को अपना घर छोड़कर बाहर रहना पड़ रहा है। लगभग साल भर की अशांति के बाद फ़रवरी 2024 में मणिपुर हाई कोर्ट ने पिछले आदेश से उस अंश को हटा दिया है जिसमें मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफ़ारिश का ज़िक्र था। लेकिन इसके बाद भी मणिपुर में हालात अब तक सामान्य नहीं हुए हैं। आलम ऐसा है कि हजारों मतदाता अब भी राहत शिविरों में हैं और चुनाव आयोग को वहीं से उनके मतदान का इंतजाम करना पड़ रहा है।

    कांग्रेस सांसद राहुल गांधी दो बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं। उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत भी मणिपुर से ही हुई, ताकि इस राज्य की ओर शेष भारत का ध्यान खींचा जा सके और यहां हालात सामान्य करने का दबाव राज्य और केंद्र सरकार पर बनाया जा सके। यह हैरत की बात है कि राहुल गांधी ने हिंसाग्रस्त मणिपुर का दौरा किया, उनके अलावा कई और विपक्ष के नेता मणिपुर चले गए, कई पत्रकारों ने मणिपुर जाकर जमीनी स्थिति का जायजा लिया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक मणिपुर नहीं गए। बल्कि नवंबर-दिसंबर में जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, तो मणिपुर के पड़ोसी राज्य मिजोरम में प्रचार के लिए श्री मोदी नहीं गए, क्योंकि फिर उन पर मणिपुर जाने का दबाव भी बढ़ जाता। देश में कई बार प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किए गए कि वे सारे देश में घूम सकते हैं, विदेश जाने के लिए वक्त निकाल सकते हैं तो एक बार भी मणिपुर क्यों नहीं गए।

    प्रधानमंत्री से यह सवाल भी किया गया कि पूर्वोत्तर के इस राज्य में भाजपा की सरकार है, तो वहां के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह से अब तक त्यागपत्र क्यों नहीं लिया गया। लेकिन इनमें से किसी सवाल का जवाब श्री मोदी ने नहीं दिया। और अब चुनावों के पहले वे मणिपुर का ज़िक्र कर भी रहे हैं, तो उसमें यह दावा कर रहे हैं कि मणिपुर में समय रहते केंद्र सरकार के दख़ल के कारण स्थितियां सुधरी हैं। जबकि संसद के 2023 के मानसून सत्र में विपक्ष के सांसदों ने जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, तब जाकर खूब मिनटों का बयान मणिपुर पर प्रधानमंत्री ने दिया था। उसी दौरान मणिपुर में दो कुकी महिलाओं का वस्त्रहरण करके उनकी परेड करवाने का एक वीडियो भी सामने आया था, जिस पर विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए थे, और मजबूरन प्रधानमंत्री को बयान देना पड़ा था। अब एक तरफ नरेन्द्र मोदी दावा कर रहे हैं उनकी सरकार ने समय रहते हालात संभाले और वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने अभी कहा है कि दो कुकी महिलाओं के यौन उत्पीड़न और उनकी परेड करवाने का वीडियो विपक्ष ने वायरल किया था ताकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार को बदनाम किया जा सके। बीरेन सिंह ने दावा किया कि इस वीडियो के वायरल होने के कारण ये बात पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दी गई कि उन महिलाओं को मैतेई समुदाय की कुछ महिलाओं और युवाओं ने बचाया था।

    बड़े दुख की बात है कि एक राज्य में फैली अशांति को केंद्र और राज्य की सत्तारुढ़ सरकारें राजनीति का विषय बना रही हैं, जबकि मणिपुर की जनता को इस वक्त हर तरह से सहारे और संवेदनशीलता की जरूरत है। विपक्ष अगर वहां की समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान दिला रहा है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उन्हें गंभीरता से सुने, न कि इसे विपक्ष की शिकायत के तौर पर ले। वहीं अगर यौन उत्पीड़न का शिकार महिलाओं की मदद दूसरे समुदाय के लोगों ने की तो यह बात सराहनीय है, लेकिन इसमें सरकार अपनी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकती कि उन महिलाओं के साथ ऐसा दुव्यर्वहार हो सके, ऐसी नौबत ही क्यों आई।

    मणिपुर में अभी स्थिति संभालने का श्रेय अगर प्रधानमंत्री ले रहे हैं, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि इस मामले की गूंज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठी। यूरोपीय संघ से लेकर अमेरिका तक कई जगह मणिपुर में हुए अत्याचारों की निंदा की गई। इस वक्त भी मणिपुर में हालात पूरी तरह से संभले नहीं हैं। हजारों लोग अगर अब भी विस्थापित हैं, तो फिर केंद्र सरकार खुद की पीठ कैसे थपथपा सकती है।

     

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें